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क्या दिन थे ना वो
कितने लम्हें
हमने एक दूसरे की
सरगोशी में बिताए थे।
तुम जो फूँक मार के
मेरी ठंडी हथेली में भर देती थी थिरकन
और अमावस रातों में चाँद टाँक देती थी ।
देखो तो
तुम्हारे होटों का तिल
मेरे कान्धे पे उग आया है।
~त्राण
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