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जाने क्या बात है
घड़ी की टिक टिक की आवाज़ का शोर भी
ऐसा लगता है जैसे धड़कन कोई टप से नीचे गिर जाती है
हलक में।
दिल ज़ोर से धड़कता है जैसे डूबने वाला कोई
अनगिनत तमाचे मारता है पानी को
पानी की गलती बूझो तो जाने
मेरी आँखों के पर्दे में सपने क़ैद नहीं होते
सब धुंधला सा दिखता है
पुराना कोई सपना फट के बिखर गया हो
मेरे तो ज़हन में भी तारे नहीं टूटते
पखवारे पखवारे गलता हूँ और
घूम के पहुँचता हूँ अमावस पे
फ़लक पे दैजूर सा पसरा हूँ
मेरी शाखों पे उग आया ठूँठ
जैसे मस्तिष्क में उग आता है अवसाद
मन का ये घना जंगल
जुगनू विहीन हो गया है
जाने दो
एक अदद ज़िंदगी है
किसी दिन इसे भी अक्ल आएगी।
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