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अब किससे क्या कहिए
हक़ीक़त है तरजुमा नहीं
वक्त बेवक्त बीतता है
ज़िंदगी है फ़साना नहीं
मिल जाए तो मंज़िल है
रास्तों No posts
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अब किससे क्या कहिए
हक़ीक़त है तरजुमा नहीं
वक्त बेवक्त बीतता है
ज़िंदगी है फ़साना नहीं
मिल जाए तो मंज़िल है
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