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लै मुरली नख शिख़ तक साजो, गात बजावत ग्वालन में ।
कर कोमल ,सलिल, सरोज भलो ,दिन रात फिरत संग गईयन में।
मंजुल अंजुल संग राशि रचो , भ्रुकुटी विलसत बनवारी को
भौहन मटकत नैनन छिपकत कटिबंध बनी अब नागिन सो।
मेरे मोहन विचरत है फिरत ब्रज में है बसत धूरी माटिन में।
जब जन्म लियो लीला करके, लाली चित लाय लगी सबके।
सब तोड़ दियो, नीर मोड़ दियो, डग दृढ़ कियों माया करके।
मामा तारो, अंगना वारो ,अमृत वसुधा पर लाई दियो।
ये बाजी लगे बजना सबके ,यदुनंदन आई गयो चलके।
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