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मंटो को जानने के लिए सबसे पहले मैंने मंटो से पूछा तुम कौन हो?
जवाब मिला "मैं एक जेबकतरा हूं जो अपनी जेब ख़ुद काटता है, और कोई कहानी मेरी जेब से कूदकर बाहर आ जाती है।"
मंटो का जवाब साधारण नहीं हो सकता क्योंकि सआदत हसन के बाद "मंटो" का पैदा होना ही खुद में एक बड़ी घटना थी। मंटो ही नहीं उनकी कहानियां भी हमारे साथ जिंदा हैं उनके किरदार भी कभी हमारे अंदर कभी आस पास भटकते मिल जाते हैं। उनके अफसाने एक एहसास हैं उनकी बनावट और बेबाकपन भी एक एहसास हैं। मंटो के अफसाने किसी व्याख्या दृष्टि का सहारा नहीं लेती पर विश्लेषण होता है लेकिन अनुभव के द्वारा किसी दैवीय संवेदना की तरह।
जॉन डान ने लिखा है.
उस का विशुद्ध और बोलता सा रक्त उस के कपोलों में बोलता था और इतना स्पष्ट रूप से उत्तेजित था कि यहां तक कहा जा सकता था कि उस का शरीर सोचता था।
मंटो के अफसानों में सुंदरता और क्रूरता एक साथ गूंथ जाती हैं, कभी कभी ये खयाल आता है की उसको मंटो के अफसानों के अलावा कोई नाम नहीं दिया जा सकता। मंटो के अफसानों में सुंदरता और क्रूरता के बाद एक और खास बात है जो शायद मेरी नजर में मंटो को मंटो बनाती है वह है विडंबना ये साधारण विडंबना नहीं है, ये मंटो के विडंबनाओं की दुनिया है। "बाबू गोपीनाथ" में मंटो ने लिखा- "रण्डी का कोठा और पीर का मजार बस ये दो जगह है जहां मेरे मन को शा
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