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आंखों से सरकते,
नींदों के ये सिलसिले।
यादो के झुरमुट में,
अटक से जाते है कहीं।
कहते दरख्तों से शायद,
ये कहानी अपनी।
वो गुनाहों के पन्नो में,
उलझ से जाते है कहीं
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आंखों से सरकते,
नींदों के ये सिलसिले।
यादो के झुरमुट में,
अटक से जाते है कहीं।
कहते दरख्तों से शायद,
ये कहानी अपनी।
वो गुनाहों के पन्नो में,
उलझ से जाते है कहीं
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