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कितने ही अर्द्धसत्यों के बाद भी
तुम आदरणीय 'बाबू' बन जाते हो
तुम घोषित किये जाते हो
एक अप्रतिम आंदोलनकारी
बिना किसी पुष्टि के
कि तुम विद्रोह में किस तरफ थे
तुम्हारी योग्यता की मिसाल दी जाती है
यह जाने बिना कि
तुम कितने कंधों पर जूता रखकर
इस ऊँचाई तक पहुँचे हो
तुम्हारी कविता बन जाती है इस सदी का विवरण
यह भुलाकर कि तुम्हारी कलम और कागज़
किन लोगों की ज़मीन पर बनी फ़ैक्टरियों से आई है
तुम चमकाते हो अय्याशों की तलवारें
बेरंग पड़ी आदिवासियों की प्रतिमाओं पर
चढ़ता नहीं एक भी फूल
तुम्हारे थमाए झुनझुने एक दिन फेंक दिए जाएंगे
स्वाभिमान आँख उठाकर देखेगा
एक उलगुलान फिर होगा
अपनी पहचान, अपनी शहादत
तुम्हारी चेतना तक पहुँचाने के लिए।
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