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ख़ुदा ने की होगी जब कल्पना इस सृष्टि की,
सोच उनकी भी होगी, एक नई दृष्टि की,
खुद के बुनें नियम भी उन्होंने तराशे होंगे,
सबको खुद से जोङने के पथ तलाशे होंगे,
ख़याल उनको भी ना कभी, आया होगा शायद,
ख़ुदा से जन्मा व्यक्ति, खुद को ख़ुदा समझ लेगा अनायास,
अनेकों भ्रांति हैं, इंसा को इस संसार में,
जगत के जन्मदाता ही नहीं, इंसा के परिवार में,
खुद को तुम रचयिता, पालनहार समझ बैठे,
जैसे सूखा वृक्ष तन के खड़ा, ना झुका, ना लेटे,
खङी इमारत भी जैसे संगमरमर पर इतराती हैं,
वैसी ही तुम्हारीं बोली, खुद को खुद की नींव बताती हैं,
एक क्षण सोचकर भी देखों, तने वृक्ष के उदगम को,
मान जाओगे तुम भी, ख़ुदा और खुद के संगम को,
केवल जीवमात्र हों, एहसास करोगे तुम एक दिन,
समाहित नहीं तुम में पूरा जीवन,
ये बात इतनी भी नहीं तीक्ष्ण,
जो पथ तलाशें ख़ुदा ने, उनकी तरफ़ एक बार तो बढों,
बहती धारा हों तुम, पर अपने उदगम को मत भूलो,
तुमने जिस क़दर खुद को, ख़ुदा से कर लिया जुदा,
मुश्किल होगा खोकर पाना, तुम्हारें लिए फिर से ख़ुदा
सोच उनकी भी होगी, एक नई दृष्टि की,
खुद के बुनें नियम भी उन्होंने तराशे होंगे,
सबको खुद से जोङने के पथ तलाशे होंगे,
ख़याल उनको भी ना कभी, आया होगा शायद,
ख़ुदा से जन्मा व्यक्ति, खुद को ख़ुदा समझ लेगा अनायास,
अनेकों भ्रांति हैं, इंसा को इस संसार में,
जगत के जन्मदाता ही नहीं, इंसा के परिवार में,
खुद को तुम रचयिता, पालनहार समझ बैठे,
जैसे सूखा वृक्ष तन के खड़ा, ना झुका, ना लेटे,
खङी इमारत भी जैसे संगमरमर पर इतराती हैं,
वैसी ही तुम्हारीं बोली, खुद को खुद की नींव बताती हैं,
एक क्षण सोचकर भी देखों, तने वृक्ष के उदगम को,
मान जाओगे तुम भी, ख़ुदा और खुद के संगम को,
केवल जीवमात्र हों, एहसास करोगे तुम एक दिन,
समाहित नहीं तुम में पूरा जीवन,
ये बात इतनी भी नहीं तीक्ष्ण,
जो पथ तलाशें ख़ुदा ने, उनकी तरफ़ एक बार तो बढों,
बहती धारा हों तुम, पर अपने उदगम को मत भूलो,
तुमने जिस क़दर खुद को, ख़ुदा से कर लिया जुदा,
मुश्किल होगा खोकर पाना, तुम्हारें लिए फिर से ख़ुदा
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