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घर से तो खाली हाथ ही,निकला था सफर पर।
यादों का, साथ साथ मेरे कारवां चला।।
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जो छूट गया, उसका कोई गम करे भी क्यों ।
अपना जो नहीं, उससे क्या उम्मीद भी भला।।
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पाने की खुशी, खोने का अफ़सोस नहीं कुछ।
सपनों में भी अपनो से, कोई क्यों करे गिला।।
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किस्मत के सभी खेल, नहीं कुछ भी अपने हाथ।
जो जिसके था नसीब में, उसको वही मिला।।
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जो आप कहें वो सही, जो मैं कहूं गलत।
जो साथ मिला वो भी, इसी राय से मिला।।
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कभी खुद की वजह से,नहीं हो तकलीफ किसी को।
सोचा यही सदा, न मिला पर कोई सिला।।
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अब उसके भरोसे ही, छोड़ दी है ज़िन्दगी।
जिसने पकड़ के हाथ, दिया आज से मिला।।
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अच्छाई से अच्छा, न कुछ बुराई से बुरा।
चलता रहा है, चलता रहेगा ये सिलसिला।।
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