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यादें कहां तलक जाती हैं...
...
चेतन और अचेतन मन को,
सुस्त, शिथिल,अवसादी तन को,
संघर्षों की याद दिलाकर,
उन्हीं पलों से पुनः मिलाकर,
लोरी सम आ, बहलाती हैं।
यादें कहां तलक जाती हैं।।
...
अन्तर्नाद बहुत है भारी,
अपने हिस्से की लाचारी,
खुद से खुद के ही दंगल को,
कांटो भरे घने जंगल को,
पुष्पलता बन महकातीं हैं।
यादें कहां तलक जातीं हैं।।
...
बीत गए पल वापस लातीं,
सुखद, सहज अहसास करातीं,
साथ समय के बीत गए जो,
दुर्दिन, निर्मम जख्म सहे जो,
उन्हें बुलाकर तड़पातीं हैं।
यादें कहां तलक जातीं है।।
...
यादों का है बहुत सहारा,
यहां समाहित जीवन सारा,
समय आकलन जब जब करता,
यादों से ही अक्स उभरता,
विस्तृत जीवन के हर पल को,
नित संचित करतीं आतीं हैं।
यादें कहां तलक जातीं हैं।।
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