Share0 Bookmarks 31071 Reads1 Likes
झूठ हमेशा ही, बेबस मन की लाचारी होता है।
एक सत्य खुद में ही, सौ झूठों पर भारी होता है।।
लाख छिपाओ सीने में, पर सत्य नहीं छिप पाता है।
देर-सवेर एक दिन सच, परदे से बाहर आता है।।
...
नहीं झूठ की खेती, होती फलित समय के साथ कभी।
चार दिनों की हरियाली के बाद, बिखरते पात सभी।।
राह सत्य की कांटों भरी, और पथरीली होती है।
एक बार चल पड़े, अन्त में फिर मोती ही मोती है।।
...
एक झूठ को सच करने को,
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments