
कहते हैं शराफत से, इंसान निखरता है,
विश्वास भरोसे का, किरदार उभरता है।
मासूम से दिखते जो, होते हैं बहुत शातिर,
दिल में हो शराफत तो, हर ख्वाब बिखरता है।।
बनकर शरीफ जिसने, हक अपना ना संभाला,
रह जाएगा अकेला, प्रतिमान बन निराला।
समझेंगे उसे पागल, या बेवकूफ सारे,
खाएगा सदा धोखा,जब खल से पड़ेगा पाला।।
सम्मान शराफत का, अब सिर्फ नाम का है,
हद से शरीफ बन्दा, नहीं किसी काम का है।
मोहरा है पटु-जनों का, छलियों का मनोरंजन,
उपहास मात्र है वो, पुतला जो चाम का है।।
जोकर! ये कैसे कैसे अरमान पालता है।
इसका हर एक मनोरथ, दुनियां को सालता है।
कीमत नहीं है कोई, इच्छा, लगन, वफा की,
ख्वाबों को अपने खुद ही, मिट्टी में डालता है।।
खो जाएगा जहां में, पहचान के बिना ही।
जो वक्त रहते खुद को, इसने नहीं पहचाना।
लाए न खोज जब तक, ये तोड़ शराफत का,
तब तक समझ लो इसने, दुनियां को नहीं जाना।।
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