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सम्बन्ध.......एक बेनाम सरिता !
अनादि से निकलती है, अनंत तक चलती है।
बदलते मौसम के साथ, रास्ते बदलती है।।
पानी जैसे प्यार से, किनारों को मिलाती है।ै
(घटता बढ़ता पानी, घटता बढ़ता प्यार)
दोनों को आपसी टकराव से बचाती है।।
परन्तु, हर नए मोड़ पर, नए किनारे पाकर।
पहले तो लड़खड़ाती है। फिर,
अपने ही किनारों से, किनारा कर जाती है।
कितना भी पुकारो फिर, लौट के न आती है।।
इसकी बस यही अदा, हमको नहीं भाती है।।
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