
सम्बन्ध.......एक बेनाम सरिता !
अनादि से निकलती है, अनंत तक चलती है।
बदलते मौसम के साथ, रास्ते बदलती है।।
पानी जैसे प्यार से, किनारों को मिलाती है।ै
(घटता बढ़ता पानी, घटता बढ़ता प्यार)
दोनों को आपसी टकराव से बचाती है।।
परन्तु, हर नए मोड़ पर, नए किनारे पाकर।
पहले तो लड़खड़ाती है। फिर,
अपने ही किनारों से, किनारा कर जाती है।
कितना भी पुकारो फिर, लौट के न आती है।।
इसकी बस यही अदा, हमको नहीं भाती है।।
सम्बन्ध........ एक लहराती पतंग!
ऊंचे इरादे लेकर हवा में मचलती है।
झूम झूम इधर उधर तेवर बदलती है।।
लहराती, बल खाती ऊपर को जाती है।
प्रीति के धागे को तोड़ नहीं पाती है।।
मिलता गगन में कोई हौसला बढ़ाता है।
डोरी को स्वच्छंदता में बंधन बताता है।।
बंधन हटाने को, मुक्ति लाभ पाने को,
लड़ती, उलझती है और कट जाती है।
लूटने को आतुर हाथों में फट जाती है।।
इसकी बस यही अदा, हमको नहीं भाती है।
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