
श्वास के अविरल सफर मे,एक अनजानी डगर पर,
घोर तम में, हमसफर सब, रहगुजर में खो गए है।
रोशनी की आस में, हर मोड़ की ठोकर समेटे,
जिन्दगी की दौड़ मे, हम फिर अकेले हो गए हैं।।
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गात्र का अन्तिम पहर है, व्याधियों का नित कहर है,
नेह, चाहत, मोह, माया, में घुला मीठा जहर है।
स्वास्थ्य,सन्मति,शान्ति की,ही लालसा बाकी जहन में,
धुंध में अज्ञानता की, अगोचर आत्मिक लहर है।।
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तन कसौटी पर कसा है, मन विचारों में फंसा है,
सत्य के संदर्भ सारे, साधनारत, सो गए हैं।
रोशनी की आस में, हर मोड़ की ठोकर समेंटे,
ज़िन्दगी की दौड़ में, हम फिर अकेले हो गए हैं।।
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अन्त की अनुभूति के आगोश में विचलित नहीं मन,
जिन्दगी से, जो मिला है आज तक, पर्याप्त सम है।
लोभ, लालच, कामना से, रिक्त तन मन की विधा में,
उम्मीदों के जंगलों में, अनागत का ओज कम है।।
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स्वर्ग की संभावना में, या नरक के ताप-क्रम में,
वो फंसे,मन में विकारों को संजो कर जो गए हैं।
रोशनी की राह में, हर मोड़ की ठोकर समेंटे,
ज़िन्दगी की दौड़ मे, हम फिर अकेले हो गए हैं।।
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