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मुझसे मिलकर जाते, 

गर यूं ही जाना था।

कितना अच्छा होता, 

मैं तुमको विदा करता।।


हम साथ रहे हरदम,

फिर भी ना पहचाना,

मैंने समझा अपना,

पर तुमने बेगाना।।

क्यों मोड़ रहे अपने,

अरमानों की सरिता।

कितना अच्छा होता,

मैं तुमको विदा करता।।


घर छोड़ के मानव की,

क्या मुश्किल हल होगी।

तो घर क्या, छोड़ गया,

होता दुनियां "योगी"।।

देकर अपने आंसू,

तेरी पीड़ा हरता।

कितना अच्छा होता,

मैं तुमको विदा करता।।


घर ने जो तुम्हें दिया,

तुमसे जो उसे मिला।

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