
टूटती सांसों मे भी, छोड़े न उम्मीदों का दामन,
एक दिन की उदासी का तोड़,एक पल की खुशी है।
रोष से, चिन्ता से, भय से, द्वेष से बनता नहीं कुछ,
शांति, धैर्य, विवेक हल हैं, मुस्कराहट जिन्दगी है।।
आक्रोश के अतिरेक से अन्तर सदा अवरुद्ध रहता।
सोच निष्क्रिय, बुद्धि निष्फल, और दिल में बेबसी है।
दहकता है कुछ जहन में, कुछ न बचता इस दहन में।
तन में अकड़न और आंखों से बरसती आग सी है।।
फिक्र से,चिन्ता से भी मिलता नहीं हल किसी छल का।
सोच हर पल की सदा, तन और मन को सालती है।
छीन लेती है खुशी, सुख, शान्ति,सन्मति, मुस्कराहट,
जीते जी इंसान को, यह अधमरा कर डालती है।।
भय हृदय में बैठ जाए, तो स्वत: ही कदम रुकते।
सहज राहें भी लगें, आतंक की पर्याय दिन में।
दिल को कर देता है छलनी,मगज के हर डर का आलम,
रूपान्तरित उल्लास मन का, उदासी में एक छिन में।
शान्त, चिन्तामुक्त मन से सुलझतीं हैं उलझने सब।
धैर्य, राहों के सभी, अवरोधकों को तोड़ता है।
मुस्कराहट से भ्रमित हो, भागती दिल की उदासी,
बुद्धि संग विवेक ही, टूटे दिलों को जोड़ता है।।
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