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लिखता हूं कविताएं अक्सर, महज भावनाओं में बहकर,
जितना मैं लिखता हूं, शायद उतना मुझे नहीं आता है।
कोई मुझसे लिखवाता है....!!
...
नहीं कहीं है कोई मानक, विषय उभरता कभी अचानक,
अन्तर्मन में अभिव्यक्ति का भाव सहज ही अकुलाता है।
कोई मुझसे लिखवाता है.....!!
...
उगते शब्द स्वयं ही मन में, और निखरते स्वयं जहन में
शब्द शब्द जुड़ एक श्रंखला का क्रम सा बनता जाता है।
कोई मुझसे लिखवाता है.....!!
...
कोई शक्ति सजाती इनको, फिर लयबद्ध कराती इनको,
एक विषय,शब्दों, वाक्यों में ढलकर कविता बन जाता है।
कोई मुझसे लिखवाता है.....!!
...
मेरा यह विश्वास अटल है, कोई ना कोई संबल है,
दिल-दिमाग में शब्द सृजन कर, राह सुगम करता जाता है।
कोई मुझसे लिखवाता है.....!!
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