
स्नेह, शुभचिंतन, निजी सम्मान की,
कर नहीं देना कभी अवहेलना।
खेल लेना तुम खिलौनो से मगर,
किसी की भावनाओं से कभी मत खेलना।।
चोट शब्दों से अधिक, खामोशियां देतीं हैं अक्सर।
आत्मसंयम को धराशायी, करें जो तीर बनकर।।
बिखर कर इंसान, अपने उसूलों को तोड़ता है।
जिस डगर मिलती है राहत,उस डगर पर दौड़ता है।।
ईगो, एटीट्यूड, स्टाइल, धरे रह जाते हैं सब,
जब भी पड़ जाता है, मजबूरी के पापड़ बेलना।
खेल लेना तुम खिलौनो से मगर,
किसी की भावनाओं से कभी मत खेलना।।
भूल जाता है कोई जब, प्रत्यक्ष भी इंसान है।
उसकी भी हैं भावनाऐं,उसका भी सम्मान है।।
है अगर मतभेद कोई, तो उसे स्वीकार कर।
तर्क अपने पक्ष में रख,सदाशय व्यवहार कर।।
है विचारों की लड़ाई, दुश्मनी तो है नहीं,
घात से, प्रतिघात से, क्यों दूसरे को ठेलना।
खेल लेना तुम खिलौनो से मगर,
किसी की भावनाओं से कभी मत खेलना।।
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