ख़त बेखत's image
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खत पाया उनका, तो मन के, 

कबसे दबे भाव जागे।

दूरी का दुख क्षीण हुआ,

पर दिल के विरह घाव जागे।।


खोला, तो बस कुशल क्षेम से,

इतर नहीं कुछ भी पाया।

इतने इंतज़ार के फल में,

खाली खत, मन भर आया।।


ऐसा भी क्या खत,

जिसमें कुछ वजन न हो।

जिसको पढ़कर, मन

मयूर सा मगन न हो।।


पाकर भी गर,

इंतज़ार की आस रहे।

पढ़कर भी गर,

बाकी दिल में प्यास रहे।।

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