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खत पाया उनका, तो मन के,
कबसे दबे भाव जागे।
दूरी का दुख क्षीण हुआ,
पर दिल के विरह घाव जागे।।
खोला, तो बस कुशल क्षेम से,
इतर नहीं कुछ भी पाया।
इतने इंतज़ार के फल में,
खाली खत, मन भर आया।।
ऐसा भी क्या खत,
जिसमें कुछ वजन न हो।
जिसको पढ़कर, मन
मयूर सा मगन न हो।।
पाकर भी गर,
इंतज़ार की आस रहे।
पढ़कर भी गर,
बाकी दिल में प्यास रहे।।
दिल से दिल की बात,
नहीं कह पाए जो।
कैसे प्राणप्रिया का,
खत कहलाए वो।।
चाहत हो तो, लिखने का,
कोई मंत्र नहीं होता है।
प्रियतम की प्यारी बातों का,
अंत नहीं होता है।।
और किसी का, लिखा हुआ,
कुछ राज न खोले सीने का।
अपनी बात आप कहना,
है अलग तरीका जीने का।।
कुछ तो लिख दो ऐसा,
अपनी शाम सुहानी हो जाए।
हस्ती हो दीवानी,
मस्ती पानी पानी हो जाए।।
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