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क्यों सहम जाता है ये मन,कड़कती बरसात में।

क्यों दहल जाता है ये मन, इक अकेली रात में।।

...

कौन जाने कब तलक, होगी सहर इस रात की।

आज कुछ ज्यादा ही, बहके हैं निरे जज़्बात में।।

...

खुद कमाया सुख, कभी खैरात में मांगा नहीं।

इसलिए कोई न दे, ताना मुझे हर बात में।।


प्यार से जो भी मिला, बेखोफ उसके हो लिए।

फर्क ही खोजा नही, खुद में, कभी हालात में।।

...

आज भी जैसा, जहां हूं, हूं स्वयं

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