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लो फिर से आ गया दिसंबर, नई जनवरी लाने को।
नये रूप में फिर दुनियां को, नई राह ले जाने को।।
दूर रहा दस माह दिसम्बर,सदा जनवरी से आगे।
लेकिन खुद वह सदा जनवरी के पीछे पीछे भागे।।
गये साल के गये महीने, फिर से वापस आएंगे।
ना जाने इस बार यहां वो, क्या गुल नये खिलाएंगे।।
बीते वर्षो की यादों को, नए वर्ष से जोड़ेगा।
साल पुराना सुख दुख सारे, साथ हमारे छोड़ेगा।।
हर नया वर्ष, संकल्प नये, लेकर दुनियां में आता है।
मिलने और बिछड़ने का क्रम, यूं ही चलता जाता है।।
कुछ दिन का उल्लास मगर,फिर वही नित्यक्रम होता है।
सुख-दुख में बंटते हैं, हर दिन-रात खुशी गम होता है।।
बिछड़े जो इस वर्ष, संजोया है उनको अपने दिल में।
आंखों मे है नमी मगर, मुस्कान दिखेगी महफिल में।।
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