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वक्त के साथ चलेगा, तो निखर जाएगा।
और जो रुक गया, सपनों सा बिखर जाएगा।।
नींव गर मजबूत हो तो, ठोस बनती है इमारत।
खोखली हो नींव तो कल ढह ये शिखर जाएगा।।
श्वास जब तक है बदन में, नाम भी जिन्दा रहेगा।
स्वर्गवासी, श्वास के, जाते ही ये कहलाएगा।।
जा रही वादों की रौनक, सोच हर आजाद है।
धीरे धीरे बेअसर, इनका असर हो जाएगा।।
रिश्तों के बंधन, उलझते जा रहे निज स्वार्थ में।
स्वार्थ बिन सम्बन्ध जुड़ना, असंभव हो जाएगा।।
अपनों का अपनों से मिल, दुःख,दर्द हो जाता है कम।
अपनों से, अपनी सी प्रीति, अपना ही कर पाएगा।।
रात -दिन के फेर से, निकलेगी तब ही जिन्दगी।
ज़िन्दगी का जब यहां, पूरा सफर हो जाएगा।।
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