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दो हस्ती के मिलन से, पड़ा दोस्ती नाम।
सच्ची हो गर दोस्ती, बनते बिगड़े काम।।
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एक दूसरे के लिए, रहें सदा तैयार।
ना ही कुछ एहसान हो, ना कोई उपकार।।
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निर्मल मन, निस्वार्थ ही, रहे जहां व्यवहार।
कैसी भी विपदा पड़े, पड़ती नहीं दरार।।
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पर मिलता ही कहां है, अब ऐसा संयोग।
अपने ही हित कार्य में, व्यस्त सभी हैं लोग।
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ऐसी भी क्या दोस्ती, जिसका ओर न छोर।
काज परे कछु और है, काज सरे कछु और।।
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बिन बतलाए जान ले, दुःख, तकलीफ समान।
तुरत करे उपचार तो, उसे दोस्ती मान।।
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रही नाम की दोस्ती, बचा नाम का प्यार।
दिनचर्या से लुप्त हैं, परहित, सद्व्यवहार।।
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अपनी अपनी ढफलियां,अपने अपने राग।
जले होलिका में सभी, दया,धर्म,अनुराग।।
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