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बीत गया यह साल भी, करके अपना काम।
कुछ खुशियों की आड़ में, देकर दर्द तमाम।।
विगत वर्ष में किया, एक संकल्प हो गया पूरा।
किन्तु मुख्यत: जो निर्धारित था,रह गया अधूरा।।
खुशियों के अनुपात,दुखों का पलड़ा अतिशय भारी।
पित्र - शोक के साथ, पुत्र सम जामाता मति हारी।।
कोविड से इस वर्ष रही राहत, पिछले वर्षो से।
पर जाते जाते डरा रहा फिर, अपने निष्कर्षों से।।
नए वर्ष से बहुत अधिक, उम्मीदें सबने पालीं।
अब भविष्य पर निर्भर, झोली भरी रहे या खाली।।
कर्म प्रधान जगत में, फल कर्मों पर ही निर्भर है।
नीति और नीयत अच्छी तो, नहीं हार का डर है।।
जाने क्या लेकर आए, नूतन जनवरी- दिसम्बर।
खो जाना फिर दिनचर्या में, छोड़ सभी आडम्बर।।
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