
रहने को आवास चाहिए,और घूमने को दुनियां,
मनचाहा भोजन,आजादी, हर इंसान खोजता है।
जंगल का हर जीव, आश्रित है जो केवल जंगल पर,
इंसानों के लोभ स्वार्थवश, जीवित नर्क भोगता है।।
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पशु,पक्षी,जल-जीव,सभी का हिस्सा है इस धरती पर,
भोजन,छांव,हवा,पानी पर, उनका भी पूरा हक है।।
पर इंसानी मनमानी, चलती नित जल,नभ,भूतल पर,
अब कितनी ही दुर्लभ प्रजातियां,बच भी पाएंगी?शक है।।
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अभी 'लोकडाउन' मे जब घर से भी निकलना दूभर था,
तब हर पल हर इन्सान, बाहर जाने को उत्सुक होता था।
किन्तु प्रशासन के भय से जब तोड़ न पाता था बन्धन,
तो मजबूरीवश दीवारों के, घेरे में बैठा रोता था।।
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सिर्फ मनोरंजन की खातिर, जंगल-जीव शिकार बने,
चिड़याघर सी जेल मिली, बित्ती भर का आवास मिला।
बेजुबान,असहाय, नहीं समझा पाए अपनी पीड़ा,
बिना गुनाह,वकील उन्हें,आजीवन कारावास मिला।।
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समझदार जीवों ने केवल अपने ही हित का सोचा।
अपने सिवा अन्य जीवों को उसने सदा नकार दिया।।
अपने स्वार्थ हेतु ही केवल,पकड़ा,पाला,बेचा, खाया,
जब तक चाहा उपयोग किया,जब जी चाहा दुत्कार दिया।।
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मांसाहार, जहां खाने को कुछ और नहीं, मजबूरी है,
केवल जिव्हा के स्वाद हेतू, हत्या क्या बहुत जरूरी है।
जैसा खुद का दर्द, भावना उनकी भी वैसी ही है,
शाकाहार, उपहार प्रकृति का, जीवन की कस्तूरी है।।
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इनके लिए संस्थाएं जो बनी, तटस्थ ही रहीं सदा,
बरना चिडियाघर के जैसे जेल नहीं बन पाते तब।
जंगल में स्वच्छन्द विचरते, जीव गगन में फहराते,
और नदी, झरनो में दिखते लहराते, बल खाते सब।।
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