
जितने चाहे दुर्ग बना लें, अन्तरिक्ष में ध्वज लहरा लें।
परमाणू अस्त्रों की छाया में खुश होकर दिल बहला लें।।
किन्तु अंततः निर्वासन का ताप सभी को ही ढोना है।
राजा हो या रंक, जमीं पर खाक सभी को ही होना है।।
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पद, गरिमा अति अधिकाई हो,महल,अटारी,ऊंचाई हो।
धन,साधन,बल भरपाई हो,किसी धर्म का अनुयायी हो।।
अग्नि-पुंज या वसुधा-पट में, राख सभी को ही होना है।
राजा हो या रंक, जमीं पर खाक सभी को ही होना हैं।।
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निर्विकार ज्ञानी, ध्यानी हो, दुर्जन, पामर, अभिमानी हो।
ना अतीत, ना वर्तमान में, जिसका कोई भी सानी हो।।
एक दिवस इस जीवन-रण में हार,सभी को ही सोना है।
राजा हो या रंक, जमीं पर खाक सभी को ही होना है।।
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पद, प्रसिद्धि,पैसा,प्रभाव,सब,यहीं धरा पर रह जाता है।
पाप-पुण्य, हित-अहित का, हर कर्म साथ में जाता है।।
कर्मों के अनुसार, फेल या पास सभी को ही होना है।
राजा हो या रंक, जमीं पर खाक सभी को ही होना है।।
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