
सब कुछ नहीं किसी को मिलता, कुछ ना कुछ तो रह जाता है।
जितना होता है किस्मत में, उतना जीवन में पाता है।।
मिल भी गया सभी कुछ तो फिर, जीवन में क्या रह जाएगा।
किसके लिए जिएगा आखिर, कैसे समय बिता पाएगा।।
इसी अधूरेपन की चाहत, में कटता है जीवन सारा।
सब कुछ हासिल हो जाए तो, खाली बैठे नहीं गुजारा।।
किसकी आस करेगा कोई, किसके लिए करे कोशिश,श्रम।
बिना लक्ष्य के तो जीते जी, स्वयं पंगु हो जाएंगे हम।।
ऐसे निष्क्रिय, कर्महीन हो, जीवन जीना बेमानी है।
इसीलिए कोई ना कोई, इच्छा बाकी रह जानी है।।
पूर्ण हुई जो अभिलाषाएं, उनका तन मन आभारी है।
बाकी जो रह गईं अधूरी, सिर्फ बेबसी, लाचारी है।।
मानव मन का है स्वभाव यह, इच्छाओं का अन्त नहीं है।
एक अगर पूरी हो जाए, तो दूसरी तुरन्त वहीं है।।
श्वासों का अनवरत प्रदर्शन, तन मन के हित शुभकारी है।
जिस दिन पूरी श्वास हो गईं, फिर न लौट आनी बारी है।।
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