
Share0 Bookmarks 55 Reads2 Likes
भीतर से अशांत बाहर से शांत हो रहीं हैं,
आहिस्ता आहिस्ता वो अब वसंत हो रहीं हैं,,
वो अब रातों को गिना नहीं करती है,
लगता है वो शून्य का अंत हो रहीं हैं,,
सीरत छिपा कर वो रुख़सत हो गई,
ये देख उसकी आंखे अनंत हो रहीं हैं,,
बिना सासों की मुरत रह गई है वो,
तभी धीरे धीरे खुद से मृदंत हो रहीं हैं,,
खुद से झगड़ झगड़ कर थक चुकी हैं,
इसी लिए खुद से अब शांत हो रहीं हैं,,
✍️टीना कुमावत ✍️
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments