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शब्दों के अर्थ में व्यर्थ बसर होती रही,
जिंदगी तु खुद में कुछ तो यू खोती रही,,
मैं रात भर यादों के सहारे सोचती रही,
मेरी आंखे बंदिशें मैं क्यूँ भर रोती रही,,
वो तो झूठा होकर भी सच्चा ही रहा,
मैं पाक होकर भी राख मैं जलती रही,,
आज मेरे भी घर खुशियां होगी सोच,
हर दिन मैं जिंदा होकर यू मरती रही,,
तेरी हर बात पे एतबार कर लूं जिन्दगी,
सो इन बातों के सितम खामोश सहती रही,,
✍टीना कुमावत ✍
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