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अक्सर किसी के जाने से,
किसी ख़ामोशी से,
कोई चुप हो जाता है,
भूल जाता है बोलना,
हँसना, और रोना।
लेकिन,
कोई मर जाता है क्या??
ढो रहा होता है,
आत्मा से सहारे,
एक जिंदा लाश को।
कुछ पाने की तलाश में,
कुछ खोने की आस में।
मगर सबके सामने खुश है,
हँसता है, मुस्कुराता है।
लेकिन! कहीं...
कोई मर जाता है क्या!!?
उसके सूखे चेहरे पर,
रूखी सी मुस्कान,
ऐसा लगता है,
जैसे किसी कब्र पर
कोई फूलों का गुलदस्ता।
ऐसा गुलदस्ता,
जिस से कब्र खूबसूरत दिखती है,
खुशबू से मह
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