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क्यों हूँ क्या हूँ

क्यों घूमता हूँ दरबदर

क्यों मिलने से कतराते है 

लोग इस कदर

मैं भी तुम्हारा हिस्सा हूँ।

फिर क्यों अलग दिखता हूँ

रहता हूँ तुम्हारी दुनिया में

क्यों नहीं मैं किसी का रिश्ता हूँ।

माना कुछ नहीं है मेरे पास

फिर भी ये जमीन

आसमान मेरा है 

इसके नीचे ही मेरा डेरा है।

जैसा भी हूँ खुश हूँ 

अपनी दुनिया में न रिश्ते है ना कोई

बिलकुल अकेला हूँ।

उसकी चौखट से ही

मेरा उजाला होता है।

उसकी मर्जी से ही

हर एक निवाला होता है।

वही तो ऊपर वाला है।

कुछ लोगों के वजह से

मेरा तन ढकता है

समय हर पल मुझे ठगता है।

क्या मैं यूं ही जीता रह जाऊँगा

भगवान के नाम पर दे दो

यही कहता रह जाऊँगा

समाज का अंग हूँ

और तुम्हारे संग हूँ

सोचो मेरे बारे में

फिर क्यों तुमसे अलग हूँ।
 


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