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सुनो…
ये सच है तुम याद बहुत आते हो….
वो जो तोहफे है ना और वो फूल जो हर शाम तुम मेरे लिए लाया करते थे। उनको आज भी मैंने अपनी अलमारी में समेट के रखा है..|
और हा मैं खावा हूं खुदा से बहुत ज्यादा खफा हूं कि काश एक तो नामुमकिन ख्वाहिश मांगने का हक दिया होता खुदा ने तो उस खुदा से तुम्हें छिन के वापस ले आती…|
सुनो.. ये आंखे देखो रात भर रो रो के लाल पड़ गई है अब तुम आओ ना ये सुर्ख लाली आंखों की उतारो और इन्हें रुक्सार पर सजाओ तुम्हारे बेगेरे ये बिंदी तन्हा- तन्हा सी है इनहे माथे पे आके सजाओ ना। मेरे लब अब मुझसे खफा है आके बात करो ये भी तुम्हारा नाम लेने को तरस गए हैं..|
सुन खुदा...
बता जरा मुझे कहा जाके उसकी फरियाद करु गुहर करू मैं कि कब्र से नेकल के वो मुझे अपनी बाहो में भर ले अब तू ही फैसला कर या उसे जिंदा कर या मुझे उसी की मिट्टी में तफन कर...|
क्योंकि ये सच है वो याद बहुत आता है मुझे वो याद बहुत आता है मुझे…|
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