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आज से नही.... युगों से जलती आई हूं
कभी जौहर किया...कभी सती हुई
आज से नही हमेशा से सहती आई हूं
जन्म का बोध हुआ,तो विवाहित थी
जीना कहा नसीब हुआ,
जिंदगी तो मैने दी
एक,दो नही कई बच्चे...सारे लड़के
गर्वित किया परिवार को, समाज को
खुद हमेशा इसी बोझ तले दबी रही
लड़की को कोख में क्यों नहीं धारण किया मैने?
बचपन कटा,शीश झुका रहा,नजरे चुराती रही
जवा
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