
Share0 Bookmarks 80 Reads2 Likes
मेरे शब्द मेरा सोलह श्रृंगार हैं
जब कण्ठ में विराजे तो नवरत्न हार हैं
जब होठों से छलके तब मेरा प्यार हैं
जब भावेँ सिमटे ये माथे पर
बिन्दी बन मेरा खुमार हैं
आँखों से जब बहते तो
मेरी काजल और लज्जा का आधार हैं
मेरे शब्द जब किसी के कानो पे देते दस्तक
तब कनक कुण्डल का उपहार हैं
ये मेरी हथेलीयों पे मेहन्दी की महक
पैरों पे पायल की झन्कार हैं
ये मेरे शब्द मेरा सोलह श्रृंगार हैं
जब कलाईयों पर बिछती तो अनमोल कंगन हैं
फिर उंगलियों से अंगूठी बन लिपट उनका इकरार हैं
जब कागज पर उतरती तो मेरी भावना का इजहार हैं
ये पैरों पे पयजनिया, नाक पे नथ, हाथों पे चुरी, ललाट पर टिका और माथे पर चुनरी रूप है मेरा प्यार हैं
और क्या कहु इनका
यही मेरा सोन्दर्य यही संपूर्ण श्रृंगार हैं |
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments