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मेरे शब्द मेरा सोलह श्रृंगार हैं
जब कण्ठ में विराजे तो नवरत्न हार हैं
जब होठों से छलके तब मेरा प्यार हैं
जब भावेँ सिमटे ये माथे पर
बिन्दी बन मेरा खुमार हैं
आँखों से जब बहते तो
मेरी काजल और लज्जा का आधार हैं
मेरे शब्द जब किसी के कानो पे देते दस्तक
तब कनक कुण्डल का उपहार हैं
ये मेरी हथेलीयों पे मेहन्दी की महक
पैरों पे पायल की झन्कार
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