
यू तो हम एक दूसरे को कई सालों से जानते थे,
पर हमारी जान पहचान एक करीबी गीतकार मित्र के द्वारा हुई।
मुझे याद नहीं मैं फिर उस से कब और कहां मिली। कब हमारा एक करीबी रिश्ता बन गया, पता ही नही चला।
वो अक्सर रात को मेरे सिरहाने आ बैठती। बातें की शौकीन थी, हर बार नई बात छेड़ लेती। जब तक बात उसके मुताबिक पूरी नही जाए, मजाल है के मैं सो जाऊं ? जब कभी मेरी आंख लग जाती, तो कच्ची पक्की नींद में उसकी आवाज़ मेरे कानो में गूंजती रहती। कभी कभी तो मुझे नींद से जागा कर अपनी बात पूरी करती । बड़ी जिद्दी थी, मेरी तरह।
थोड़े ही दिनों में हमारा रिश्ता बोहुत गहरा हो गया था। मैने उसे अपने कुछ करीबी दोस्तों से मिलवाया था। पहली बार में ही उसने सब का दिल जीत लिया। एक दिन मैं उससे बिन बताए अपने एक करीबी दोस्त की महफिल में ले गई और सब से उसको रूबरू करवाया। कुछ ही पलों में उसने सब को मोह लिया, सब उसकी तारीफ करते नही थक रहे थे। उसके सच्चे साफ शब्दो ने हर एक का दिल छू लिया। मैं बोहोत खुश थी।पर शायद वो घबरा गई, शायद अभी वो सब के सामने आने के लिए त्यार नही थी।
मेरी कविता मुझसे रूठ गई।
पर वो मुझे छोड़ कर नही गई है। वो यहीं है, मेरे आस पास।
पर वो मेरे पास नहीं आती अब। मैने उसे कई बार किसी बहाने से अपने पास बुलाया, पर वो नहीं आई। एक दिन जबरन मैने उससे अपने पास बिठाया, वो खामोश बैठी रही। मेरी बात एक तरफा ही खत्म हो गई, वो कुछ नही बोली, कोई हुंगारा भी नही भरा, और चुप चाप उठ के चली गई।
मेरी कविता नाराज़ है।
किसी को कहते सुना था के कविता कही या सोची नही जाती, कविता तो तुम्हारे पे उतरती है। जैसे भगवान की कृपा। जैसे मां बाप का आशीर्वाद। मेरे साथ भी ऐसी ही कुछ हुआ था। मुझे वो रोशनी की किरण, मेरे जीने की नई उम्मीद बन के मिली थी।
कहीं मेरी कविता मुझ पे से उतर तो नही गई?
नही, मेरी कविता मेरे पास है। मैं उससे माना लूंगी।वो जानती है मुझे, वो जानती है मुझे उसकी कितनी जरूरत है। वो मान जायेगी, वो मुझ पर फिर से उतरेगी।
पर, आज मेरी कविता नाराज़ है।
_स्वाति शर्मा
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