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बिटिया हुई है

SwatiSwati March 2, 2023
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घर में गूंजती हंसी खो गयी है, 

मुस्कराहट की कुछ कमी हो गई है, 

माँ की आंखें भी अब नम हो गईं है, 

जब से पता चला है बिटिया हुई है, 

काजू की मिठाई नहीं लाई, 

नर्स पूछती अम्मा जब आई, 

खामोश देख वह फिर बोली, 

लगता है जल्दी में नहीं लाई, 

अम्मा खामोश बस उसे निहारती, 

मानो लड़का होता तो और ख्वाब सवारतीं, 

तभी अम्मा को रोने की आवाज आई, 

मानो बिटिया उन्हें पुकारती, 

आखों में उनके आंसू आने लगे, 

मानो कुछ स्वप्न डराने लगे, 

वह सहम गयी, फिर खामोश, 

कुछ रिश्तेदार भी आने लगे, 

नर्स देख सब कुछ, सोच रही थी, 

अम्मा से मानो कुछ पूछ रही थी, 

सब्र का अंतिम बांध टूटा, 

अम्मा आप किसी की बिटिया नहीं ? 

इस सवाल से खामोश माहौल टूटा, 

 ये सुन अम्मा हैरान नहीं हुई, 

उसके सवालों से परेशान नहीं हुई, 

मानो इसी सवाल की आश थी, 

किसी दर्द समझने वाले की तलाश थी, 

आखों से आंसू बहने लगे, 

कहती दर्द पुराने मेरे दिल में रहने लगे, 

बिटिया देवी माँ का रूप है, 

पर क्या सामाज मंदिर का स्वरूप है? 

रोज़ सुबह अखबार पढ़ा नहीं जाता अब, 

खबरों में कुछ नया नहीं आता अब, 

खबर किसी अत्याचार की होगी, 

या नारी के सम्मान के व्यापार की होगी, 

मैं उसे लोरी सुना रातों को सुला सकती हूँ, 

बालो में तेल लगा सोनी गुड़िया बना सकती हूँ, 

पर क्या हर वक्त साथ रह पाऊँगी?

उसके ख्वाब उसके हिसाब से बुन पाउंगी? 

वो मोहल्ले की चार बातें कैसे सुनेगी? 

छोटी सोच के बीच, बड़े सपने कैसे बुनेगी? 

अगर कल उसे अपने सपने को छोड़ना हो, 

अपने सपनो से मुहँ मोड़ना हो, 

तो क्या वो सह पाएगी? 

खुशी से रह पाएगी.

चलो उनसे तो फिर भी बचा लूँ, 

अपने आंचल में छुपा लूँ, 

पर क्या दरिंदों से बचा पाऊँगी?

खूनी नज़रों से छुपा पाऊँगी?


डर मुझे बेटी होने का नहीं, 

डर मुझे बेटी खोने का है, 

डर मुझे उसके दहेज का नहीं,

डर दहेज की आड़ में हो रही कू-पर्था का है, 

डर इस पुरुष प्रधान सामाज़ का है, 

डर मुझे उसके आने वाले कल और आज का है, 

सामाज चीखों को छोटे कपड़ो की आड़ में अनसुना कर देता है, 

किसी की हैवानियत को बिखरी जुल्फों में ढक देता है, 

बिटिया को सँजोना चाहती हूँ, 

जिंदगी में उसकी खुशियाँ पिरोना चाहती हूँ, 

ख्वाहिशें उसकी सारी पूरी हो, 

समाज के नाम पर न कोई मजबूरी हो, 

कह अम्मा यह आँसू पोछने लगी, 

कुछ पल मुस्कुरा सोचने लगी, 

छोड़ सब बिटिया को गले लगाया . 

उसके साथ नयी खुशियों को अपनाया, 

डर ये सामाज में आज भी है, 

नारी देवी का रूप, किन्तु आंसूओ में लिपटा राज़ भी है, 

पूज़ ना सको उसको ये समझ आता है, 

किंतु अपमान उनका और सहा नहीं जाता है,

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