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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सभी महिलाओं को समर्पित:-
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बेटी
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मुंह लटकाए खड़े किनारे,
वे सकुचाकर बोले लड़की है!
बैठे लड़के की आस लगाए,
पैदा अनचाही लड़की है।
तब मां छाती से लिपटाकर बोली
भाग्य खुले यह लक्ष्मी है।
बेटी मेरी बेटे जैसी,
मेरी आंखों की पुतली है।
पापा बोले परी है मेरी,
बेटी बेटे से क्या कम है !
बेटा सा पालूंगा इसको
बेटी है तो क्या गम है।
धीरे धीरे बड़ी हुई वह,
इम्तिहान अब बाकी है।
नौकरी में सिलेक्शन से लेकर,
रिजेक्शन का डर भी बाकी है।
लगे सभी तक़दीर बनाने,
तस्वीर उसे खिचवानी है।
परीक्षा के इम्तिहान सरीखे,
शक्ल उसे दिखलानी है।
बेटे के जैसी हुई परवरिश,
पढ़ी लिखी भी वैसी है।
पापा की खाली गुल्लख है,
फिर क्यों टटोली जाती है?
गृहस्थी का भार है उस पर,
दफ्तर की फाइल भी निपटानी है।
घर की इज़्जत उसके तन पर,
हाथों में कलम की भी जिम्मेदारी है।
सुनना पड़ता उसको अक्सर,
तू स्त्री है तुझसे न हो पाएगा।
उसके वांछित काम को यह कहकर
सहकर्मी को दे दिया जायेगा।
तब अखरता है उसको
कहां है उससे चूक हुई।
पुरुष सा गढ़ा है खुद को,
फिर क्यों वह नाकाम हुई।
उलझनों में पिसती रहती,
गलती रहती बनती रहती है।
साबित करने को वह खुद को,
तपकर कुंदन सी बनती रहती है।
जितना जलती उतना ही खूब निखरती है,
सानिया साइना बनकर तब वह खूब चमकती है।
मिसाइल वूमेन बनकर वह, टेसी थामस कहलाती है।
राजनीति में आकर वह द्रोपदी मुर्मू भी बन जाती है।
एक कसक अब भी सीने में,
बेटों का बेटी सा बनना बाकी है।
उसने सीखी उनकी जिम्मेदारी,
बेटों में बेटी सी करुणा आना बाकी है।
साभार - डॉ. कौशलेंद्र विक्रम सिंह
#internationalwomensday 2023
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