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एक निहारिका में बनती किसी आकाशगंगा से
तुम मुझमें आकार ले रहे हो !
अनेक गैसीय पिण्डों यानी तारे सा
तुम्हारा व्यक्तित्व गढ़ रहा है
मेरे हृदय का प्रति एक स्पंदन और
उसमें जगता भावनाओं का ज्वार.....
शिराओं में प्रवाहित होता तप्त लहू संकेत दे रहा है
तुम्हारी निकटता का;
और वह एक क्षण
जब मेरी अंतस भावनाओं की ऊर्जित तरंगों से
प्रस्फुटित होगा प्रेम,
तो किसी विशाल अस्तित्व से अलग होकर
हम बन जायेंगे दो अलग सूक्ष्म अस्तित्व,
दो अलग देंह!....
जैसे सूर्य से विलग हो बने पृथ्वी, शुक्र और
सम्पूर्ण सौर मंडल ......
और फिर जैसे सृष्टि का होता है विस्तार,
हम
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