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कुछ कहानियाँ लिखी जाती हैं,
दैहिक और मानसिक बोध से परे....
नैसर्गिक सुख के लिए!
जिनमें आदि, मध्य और अंत का कोई अवकाश नहीं होता,
जो जीवित रहती हैं पात्रों के चरित्र में
और सुनाई जाती हैं उनके विलीन हो जाने के बाद भी...
जो विकसती हैं किसी अमलतास पर,
किसी अमर बेल सी!
जिनमें स्पंदित होते हैं असंख्य भाव;
प्रेम के निकट, संबंध से परे मोक्ष नाद!
जो न परिभाषित करती हैं स्थायित्व,
न पर्याय बनती हैं उच्श्रृंखलता का;
जिनमें विरोधाभास नहीं होता मनोविकारों
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