
कुछ दिनों के परिणामों को देखने समझने के बाद मैं एक बात पे लगातार विचार कर रहा हूं। ऐसा क्यों कहते है कि सत्य की जय होती है? सत्य और धर्म की विजय होती है? क्यू? कुछ दिन ही पहले एक किताब पढ़ रहा था भगवान राम पे। उसमे एक कथन है। वह कुछ इस प्रकार है की राम सीता माता को लंका से जीत के वापस लाते है। अयोध्या में आने पर राम को यह बात पता चलती है कि उनकी प्रजा अपनी रानी को स्वीकार नही करती है। अस्वीकृति का कारण है उनकी पवित्रता। रानी के चरित्र पे सवाल उठ चुके थे। जिसको गंभीरता से लेते हुए राम ने उनका त्याग कर दिया और सीता माता को आदि कवि वाल्मीकि जी के यहां छुड़वा दिया। सीता माता गर्भवती थी उन्होंने दो जुड़वा पुत्रों को जन्म दिया, लव कुश। वही अयोध्या में राम ने अश्वमेध यज्ञ करवाने की सोची। इस यज्ञ को करवाने के लिए एक राजा को विवाहित होना और अपनी पत्नी के साथ होना अनिवार्य होता है। राम के सलाहकार और उनकी प्रजा ने राम से दूसरे विवाह करने का अनुरोध किया क्युकी अब वो सीता माता के साथ नही थे और उनका त्याग कर दिया था। राम ने कोई और शादी नही की क्योंकि उनका मानना था की उन्होंने अयोध्या की रानी का त्याग किया है ना कि अपनी पत्नी सीता का। आज के लोग इस बात पे ध्यान नही देते और राम को अस्वीकार करते है। हां मैं यह बात मानता हूं की अयोध्या की रानी को उनके यह निर्णय से पीड़ा हुई होगी, वन में रहने से भी पर जितना राम और सीता दोनो को अलग होने पर हुई होगी उतना तो नही। राम की प्रजा ने रानी को अस्वीकार किया था राम का धर्म था प्रजा की सुनना। आखिर त्याग तो रानी का था ना? शायद? खैर इस बात पे कभी और चर्चा करेंगे।
विचार करने के बाद राम ने यह निर्णय लिया की सीता माता की एक सोने की मूर्ति के साथ वो पूजा करेंगे और यज्ञ संपन्न करें
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