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यह बरसात सुहानी आई है,
मेरे अश्क बहाने आई है।
चलो आज रो लेता हूं,
चलो, भीग लेता हूं।
यह बोझ ओढ़ के बैठे है,
बादल भी बरसने को कहते है।
मैं आज इस बरसात में अश्को को भी धो लेता हूं,
मैं आज भीग लेता हूं।
जब बादल गरज कर बोलेंगे,
मैं ज़ोर ज़ोर से रोलूंगा।
जब बादल नरम पड़ जायेंगे,
मैं सिसकियों से सब कह दूंगा।
कोई नही देख पाएगा वह आंसू है जो तुम्हारे,
जैसे नही वो जान सके बादल भी तो है बोझ के मारे।
मैं आज जी भर लेता हूं,
मैं आज भीग लेता हूं।~सुयश कुमार
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