
नारी सशक्तिकरण क्या है???
कभी पूछा है हमने खुद से??
अक्सर सुना है मैंने जमाने में कभी प्रत्यक्ष कभी बहाने में,
आगे उनको बढाते है जो कहीं पीछे छूट जाते हैं।
सहारा उनको देते है जो लड़ने में कहीं टूट जाते हैं।
पर क्या हर अन्याय को सहती स्त्री वाकई असहाय है??
और हर अन्याय पर इक नियम बना देना इसका उपाय है??
जिस स्त्री ने समस्त संसार को जन्मा,
उस समाज को पुरुष प्रधान बना दिया।
महानता का स्वरूप दे कर
किसी ना किसी रूप में खुद के लिए इक साधन बना लिया।
वो उफ़ तक ना करती दर्द भी जिस पीड़ा से फड़फड़ाए
उसे देवी बना पूजते हम सब पर इंसा का दर्जा देने में घबराए।
हर रिश्ते ने उसके भाग्य में कुरबानियां लिखी,
ना चाहा फिर भी उसके जीवन में पुरुष की मेहरबानियां लिखी।
आज समाज हर स्त्री के अधिकार और समानता की बात करता है,
जो खुद है शक्ति स्वरूपा उसके लिए सशक्ति की बात करता है।
जुनो फ्लोरा बीबी फातिमा तो कभी नौ दुर्गा पूजते हैं
फिर भी निर्भया और दिशा जैसे हर रोज़ नब्बे मरते हैं।
अक्सर सोचती हूं जब आदम हव्वा चले होगे
एक एक कदम दोनो के साथ बढे होंगे।
ना कोई कम होगा ना कोई ज्यादा,
अगर इक सीमा होगी तो दूजा मर्यादा।
फिर कहां भूल हुई हमसे,
गरिमा शील संस्कार के नाम पर कुछ तो चूक हुई हमसे।
अपने किरदार को जब हम ना कर सके उज्ज्वल,
तो बांध दिया दायरों में नारी का हर बल।
जब हम एक सभ्य समाज की बात करते हैं,
न्याय और मानवता का हर पल दंभ भरते है।
तो क्यों अपनी कमजोरी पर दूजे को रोका है,
निर्बल हो तुम और हर बार नारी को बढ़ने से रोका है।
तो यहां आज मंच पर खड़ी मैं मेरा प्रश्न है सभी से,
कहीं भूल तो नहीं हो गई आज और कल से??
या प्रश्न विचारणीय है अशक्त ये समाज या आज नारी है??
की हकीकत में सशक्तिकरण कि अब किसकी बारी है??
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