
Share0 Bookmarks 29 Reads1 Likes
अकेला चल रहा हूँ मैं ,
इन खाली राहों में
दिल में तराशते उन पल को
जो बीते है तेरी बाहों में।
जो तुम मिले तो पूछूँगा ,
क्या तुम्हे सुकुन मिला
मेरी चाहत में
दुवाओं में तुमको ही मांगा हूं
कमी ना रही इबादत में।
गिरता संभलता चला जा रहा हूँ ,
मैं इन दशों दिशाओं में,
अकेला चल रहा हूं मैं
इन खाली राहों में।
आँखों मे रहती हो तस्वीर बनके,
धड़कती हो सीने में तकदीर बनके
ख्वाब और हकीकत में रहती हो हरदम ,
बसती हो मेरे तन और मन में
कहाँ खो गयी तू बिछड़ के मुझसे ,
कि तलाशूं कहकशाओं में
अकेला चल रहा हूँ मैं
इन खाली राहों में।।
मुरझा रहा हूँ मैं विरहा तपन में
सावन की बूंदों का अब है सहारा
घिरा हूं कशमकश के भंवर में
दिखा जा मुझको तु एक किनारा
घुली है फिजाओं में तेरी खुशबू
महसूस होती हवावों में
अकेला चल रहा हूँ मैं
इन खाली राहों में.........
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments