मैं अब तक नहीं समझ पाया
तुम्हारे सौंदर्य के अर्थशास्त्र को
तुम्हे नजर भर देखने का मूलधन
लिया था सुकून की दरों पर
बस कुछ ही लम्हों के लिए उधार
और तुम्हारी चाहत का ब्याज है कि
बढ़ता ही जा रहा, चक्रवृद्धि के हिसाब से...
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