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कितने फ़ूल मुरझा गये हैं कितनी सखियाँ रूठ गईं हैं।
आकर देखो अपने बाग़, कितनी कलियाँ टूट गईं हैं।
आईने ये दरों-दीवार सब, पुकारते हैं तुम्हें बार बार।
एक तुम्हारे ना आने से कितनों की गलियाँ छूट गईं हैं।
#कविता_संगम
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