
मैं सुबह बनारस की, तू अवध की शाम हो जा।
मैं पतित पावनी गंगा सी,
तू अघोर शिव अविनाशी,
मैं चंचल काया पार्वती,
तू रूप कुरूप कैलाशी,
मैं बनूँ जो गिरिजा पार्वती, तू शिव का कैलाश धाम हो जा।
मैं सम जनक नन्दिनी जानकी,
तुम ज्यूँ दशरथ राज दुलारे हो,
मैं पवित्र पतिव्रता सीता सी,
तुम मर्यादा पुरुषोत्तम न्यारे हो,
मैं बनूँ मातु सीता सी, तू अवधपति राम हो जा।
मैं जो एक गोपिका राधा हूँ,
तुम अष्टवक्र गिरिधारी हो,
मैं कठिन तपस्या मीरा सी,
तुम मुरली मनोहर बनवारी हो,
मैं हूँ गौरवर्ण रुक्मणी, तू सांवला घनश्याम हो जा।
मैं छन्द सुन्दरित गीत कोई,
तू नज़्म कोई रूहानी,
मैं कबीर की साखी कोई,
तू जैसै कोई गज़ल पुरानी,
मैं शेर बनूँ गालिब का, तू मीर का कलाम हो जा।
मैं मंदिर के सुंदर गीत प्रिय,
तू मस्जिद से अल्लाह की पुकार,
मैं हाथ जोड़ ध्याऊँ ईश को,
तू सिर झुकाये तो इबादत स्वीकार,
मैं काशी विश्वनाथ की आरती, तू काब़ा की अज़ान हो जा।
मैं श्रृंगार रस की परिभाषा,
तू वीर रस का द्योतक है,
मैं जग जननी दुर्गा सी,
तू विष्णु सा जग पोषक है,
मैं रहूँ जो नटखट बाला सी, तू धैर्य की पहचान हो जा।
मैं प्रतिपल बहती सरिता सी,
तू अगाध समुद्र खारा है,
मैं नाजुक कोमल बेल लता,
तू विराट वट प्यारा है,
मैं बनूँ जो झील मानसरोवर सी, तू श्वेत हंस समान हो जा।
~ सूर्यांश 'अधीर'
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