होली और आधुनिक युग's image
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है दिखावटी रंगों का जलसा होली पर,

असली रंगों को होली अब मोहताज़ हुई

सद्भाव, प्रेम की होली होती नहीं कहीं ,

हाँ, कृत्रिम रंगों की तो होली आज हुई ।।



सबने 'असत्य की हार' मनाई होली में ,

वो 'बुरी होलिका' आज जलाई होली में,

सबने छल, द्वेष, घृणा को काफ़ी बुरा कहा,

सबने भलमनसाहत दिखलाई होली में ।


पर नहीं आचरण में कुछ परिवर्तन आया ,

वो आदर्शों की बात सिर्फ़ अल्फाज़ हुई ।

है दिखावटी रंगों का जलसा होली पर ,

असली रंगों को होली अब मोहताज़ हुई ।।




है कई तरह के रंगों की भरमार यहाँ।

जैसे रंगों की चाह, वही तैयार यहाँ।

मिल जाते हैं बाज़ारों में जितने चाहे,

लेकिन रंगों का रंग कहाँ? वो प्यार कहाँ?


हम लाल रंग को प्रेम समझ लेते हैं सब,

ये बात मित्रवर केवल इक परवाज़ हुई।

है दिखावटी रंगों का जलसा होली पर ,

असली रंगों को होली अब मोहताज़ हुई।।



गुजिया-ठंडाई ही मीठी बाकी हैं अब ,

लोगों की वाणी तो अब मीठी रही नहीं।

कड़वा लहज़ा है यहाँ आज सब लोगों का,

वो 'मीठी वाणी' मुझको दिखती कहीं नहीं ।


लोगों के दिल में जो शूलों-सी चुभती है ,

अब सब लोगों की ऐसी ही आवाज़ हुई।

है दिखावटी रंगों का जलसा होली पर,

असली रंगों को होली अब मोहताज़ हुई।।



— सूर्या

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