
Share2 Bookmarks 85 Reads2 Likes
सीधी सादी सौम्य सुलहरें
कभी सुनामी लहर समंदर
पलट कभी फिर यह न कहना
साहस नहीं है ,मेरे अंदर
कभी सुनहरी धूप सुलभ सी
कभी जला भी सकता दिनकर
पलट कभी फिर यह न कहना
साहस नहीं है, मेरे अंदर
कभी फुहारें ,रिमझिम रिमझिम
कभी गरज कर बरसे अंबर
पलट कभी फिर यह न कहना
साहस नहीं है, मेरे अंदर
कभी हवाएं नाजुक ,कोमल
कभी जो बिगड़ें, बने बवंडर
पलट कभी फिर यह न कहना
साहस नहीं है, मेरे अंदर।
✍️ Dr Babar Khan Suri
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments