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लाऊं चंद्रमा लिए तुम्हारे?
या विभावरी कर दूं खाली,
या हर के , सुरभि पुष्पों की,
राह तेरी कर दूं मतवाली ?
किंतु इन कल्पित बातों पर,
जानूं तुम ना ध्यान धरोगे,
इसलिए प्रिये बतला दो इतना....
कैसे तुम विश्वास करोगे ?
मुझ निर्धन के पास हृदय था,
वह भी तुमको दे डाला ,
केवल प्राण बचे हैं मुझपर ,
दे दूं होकर दीवाला ?
किंतु यदि मैं मर भी जाऊं,
जानूं तुम ना साथ मरोगे,
इसलिए प्रिये, बतला दो इतना....
कैसे तुम विश्वास करोगे ?
तनिक व्यथित था, जो कह डाला,
ना कह दो, कोई बात नहीं,
फिर न तुमको , रोकूंगा मैं,
चली अगर जो आज गईं.
पुनः यदि मैं ,तुम्हें रोकता...
तुम कहतीं, तुम ना सुधरोगे.
इसलिए प्रिये, बतला दो इतना....
कैसे तुम विश्वास करोगे ?
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