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ये जिस्म की आग को हैवानियत मत
बना किसी की इज्ज़त को इसमें मत जला
इनकी मासूमियत को ऐसे मत नोच
कभी तो इनकी अहमियत सोच
क्या बीतेगी उनपे जिन्होंने इन्हें पाला पोसा
कभी तो उसकी जगह पे होके सोच
तुझे भी किसी ने जना है
अपनी जननि की अहमियत
को तौल उनकी मसूमियात से
शायद तुझे अहसास हो
की क्या छीना है उस मासूम से
सूरज मिश्रा
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